" कबीर तुम कभी कुछ बोलते क्यों नहीं, जब देखो हर बात को कल पर टाल देते हो। जैसे मेरा कोई महत्व ही नहीं, भूल गए तुम.., मेरे पास तुम ही आए थे मैं नहीं., कभी किसी लड़के की तरफ आँख उठा कर भी नहीं देखा मैंने! तुम्हारी तरफ़ भी नहीं, तुम ज़िद न करते, मेरा हाथ नहीं पकडते तो मैं कभी कुछ कहती भी नहीं..! " कबीर के कंधे पर सिर रखे रखे कविता एक साँस मे बोल गई! कबीर चुप चाप उसके लंबे रेशमी बलों पर हाथ फेरता मुस्करा रहा था..! जब उसने कोई जवाब नहीं तो कविता ने आंखें खोली उसे देखते हुए बोली " मैं तुमसे कुछ पूछ रही हूँ.? "वो फिर भी चुप था अब कविता की बड़ी- बड़ी आँखों में आँसू आ गए, लगभग रो पडी,कबीर के कंधे से सिर हटाया और खड़ी हो गई "बहुत दुख होता है मुझे तुम्हारे व्यवहार से, शुरू - शुरू में ऐसा लगता था जैसे मैं ही तुम्हारी सबकुछ हूँ, किन्तु कुछ ही दिनों में तुम बदल गए, इतने दिनों से मुझे बहलाए जा रहे हो, कभी पढ़ाई को लेकर, कभी परिवार को लेकर तो कभी कुछ, तंग आ गई हूँ मैं तुम्हारी ईन चिकनी चुपड़ी बातों से..! " इतना बोलकर कविता मुड़ी और अपने आँसू पोंछती हुई जाने लगी .!" कविता... क्या कर रही हो, तुम भी बच्चों की तरह, तुम तो जानती हो, तुम ही मेरी सबकुछ हो फिर भी..! "
मैं बच्चों जैसी कर रही हूँ मैं..? मिस्टर हम जिस समाज में रहते हैं उसकी कोई परंपरा है, कुछ नियम है और मैं उस नियम के विरुध्द नहीं जा सकती, सिर्फ़ कह देने से कोई किसी की पत्नी नहीं हो जाती , अगर हम मान भी लें और रहने भी लगें तो समाज हमें स्वीकार नहीं करेगा, इस तरह के रिश्ते को गलत करार देगा।"वो रोये जा रही थी और बोले जा रही थी," झूठे हो तुम एकदम झूठे सालो से इंतजार करा रहे हो, मेरी किस्मत में बस यही लिखा है। " अरे अरे आज तुमको क्या हो गया है कितनी बार समझाया है कुछ समय और दे दो फिर तुम्हें शिकायत का मौका नहीं दूँगा, मान जाओ अब तुम भी मुझे नहीं समझोगी तो मैं अपने मन की बात किससे कहने जाऊँगा ।" कबीर उसके आँसू पोछते हुए उसे करीब बैठा लिया, उसका हाथ अपने हाथ मे लेकर बोला" देखो मैं मानता हूँ मैंने तुमसे वादा किया है, देर भी हो रही है किन्तु हमारे उज्ज्वल भविष्य के लिए अगर थोड़ी कठिनाई आती है तो क्या हम उससे घबरा कर आपस में इस तरह उलझेंगे,? तो फिर प्यार का क्या मतलब तुम्हें तो मेरी ख़ामोशी भी समझनी चाहिए, मुझे कब क्या ज़रूरत है तुम नहीं समझोगी तो शादी के बाद मेरी सेवा कैसे करोगी बोलो! "कबीर ने उसे समझाया" देखो कुछ ही दिनों में मैं ट्रेनिंग पर जाऊँगा, मैंने अपने मरते दोस्त को वचन दिया था उसके अधूरे सपने को पूरा करना है, जब तक मैं खाकी वर्दी नहीं पहन लेता तब-तक कुछ नहीं करूंगा। कुछ महीने मे परीक्षा होगी रिजल्ट आते ही ट्रेनिंग पर जाना होगा उसके बाद नौकरी हो जाएगी तुम्हारा पति आई. ए. एस. बन जाएगा तो सोचो तुम कितना गर्व करोगी , इसलिए प्यारी बीवी तुम पत्नी धर्म का पालन करते हुए मेरा आदेश मानो और चलो तुम्हें घर छोड़ दूँ तब-तक तुम भी अपनी पी. एच. डी. पूरा कर लो, वक्त तो यूँ निकल जाएगा । एक मुठभेड़ मे कबीर के दोस्त जो कि ईमानदार और निडर ऑफिसर था, अपराधियों से लड़ते - लड़ते गोली लगी जो उसके सीने के पार हो गई थी, अस्पताल में आखिरी साँस लेते हुए उसने कहा कि" दोस्त तू उन दस्युओं के सरगना को छोड़ना मत,समाज के लिए खरनाक है l
कविता घर गई रात को अपनी पढ़ाई के बारे में सोचने लगी कब नींद लगी पता ही नहीं चला। माता पिता की इकलौती सन्तान दोनों ही शिक्षक, वो चाहते थे उनकी बेटी भी शिक्षा के क्षेत्र में ही आगे बढ़े, सबसे इज्जत वाली नौकरी खासकर महिलाओ के लिए उनके विचार से यही है! किसी स्कूल में या कॉलेज में, पिताजी चाहते कविता प्रोफ़ेसर बने, वो बहुत आज्ञाकारी और सभ्य लड़की थी। सारे संस्कार कूट कूट के भरे थे इसलिए वो अपनी सामाजिक परम्पराओं से हटकर कोई कार्य नहीं करना चाहती। कबीर से भी कम ही मिलती, फोन से ही ज्यादा बात करती l कविता रसोई में थी कबीर का फोन आया " गुड मोर्निंग मेरी गुड लक" वो बोला, कविता मुस्कराइ " क्या बात है पतिदेव आज बड़े मूड में हैं.? " बात ही ऐसी है मुझे दो दिन बाद ट्रेनिंग पर जाना है "घर आकर मेरा सामान पैक कर देना" और फोन रख दिया। कबीर चला गया l दोनों अपने अपने लक्ष्य मे लग गए, कविता का शोध पूरा हो गया, भायभा की तैयारी में लग गई बस डिग्री मिलनी थी l उधर कबीर भी आ रहा था ट्रेनिंग पूरी करके, कविता का मन मयूर हो रहा था सालों की प्रतीक्षा का प्रतिफल भगवान देने वाले है। वो अपने कमरे में बैठी अपने भविष्य के बारे में सोच रही थी कि अचानक जाना पहचाना हाथ उसकी आंखों को बंद कर दिया, ये तो कबीर के हाथ हैं..! न वो तो कल आने वाले हैं लेकिन.... कबीर..! अचानक बोल पडी अरे कैसे पहचान गई बीवी..! ख़ुशी से झूम गई अचानक मिली इतनी ख़ुशी से " हे भगवान नजर ना लगे मुझे मेरी ही.. ।" मन ही मन आंखें बंद कर कहने लगी, कबीर ने उसके कंधे को झकझोरते हुए कहा " तुम्हें क्या हुआ.?" " कुछ नहीं तुम चाय लोगे, खाना खा के जाना तुम्हें कटहल पसंद है न लाई थी तुम्हारे लिए, आज बाजार से । वो पिताजी से बातें करने लगा कविता चाय बनाने लगी अचानक उसने सुना" जी कल ही ड्यूटी ज्वाइन करनी है, आपका और माँ का आशीर्वाद लेने चला आया पिताजी को अभी नहीं बताया है, उसके पिता आर्मी मे थे ! "तुम कल ही जाओगे...?" कबीर जैसे ही कविता के कमरे में आया उसने सवाल कर किया. " हाँ डियर बीवी जाऊँगा तभी तो आऊंगा और फिर तुम्हें ले जाऊँगा अपने साथ फिर..., अच्छा सुनो मां का खयाल रखना थोड़ी बीमार सी हैं, कल जाते समय आता हूँ"! उसने कविता का माथा चूमा और चला गया l
सुबह पिताजी और माँ से मिला मेरे पास आया तो थोड़ा गम्भीर था कविता को रोता देख" अरे मुझे रोता हुआ विदा करोगी ड्यूटी के समय तुम्हारा रोता हुआ चेहरा देखूँगा मैं..? चलो हँसो..! "उसने कविता का हाथ पकडा और बाहर तक साथ आए फिर वो चला गया। उसने जाते ही ड्यूटी शुरू कर दिया, हर जगह छापे मारी और बदमाशों की धर पकड करने लगा l जिस एरिया में उसके मित्र ने मुठभेड़ किया था वहाँ उसने जान बूझ कर अपनी ड्यूटी कारवाई," आज आधी रात को छापा मारना है बीवी फिर कुछ ही दिनों में मैं और तुम..." वो हर रोज कविता से बात करता सारी ख़बर देता। वो निकल पड़ा जहां अपराधियों का ठिकाना था सबको मार गिराया उसने जब वापस आने को मुड़ा तभी एक अपराधी ने पीछे से कबीर के सिर मे गोली मार दी और कबीर वहीं पर कविता सुबह - सुबह परेशान अभी-तक कबीर का फोन नहीं आया कभी अंदर जा रही थी, कभी बाहर आ रही थी, कबीर का फोन बंद था, उदास हुई तो माँ ने कहा" क्यों परेशान होती हो थका होगा, आ जाएगा. फोन" किन्तु कविता का दिल बैठा जा रहा था अचानक उसने पुलिस की गाड़ी देखी क्या है उस गाड़ी मे कौन इस तरह आ रहा है.... जब गाड़ी पास आई तो एक पुलिस वाले ने उसके हाथ में कबीर की खाकी वर्दी थमाते हुए कहा " मैडम साहब ने आपको देने को कहा है और साॅरी बोला है... साहब. कहाँ हैं वो... सिपाही ने सिर झुका लिया और कविता उसे तो जैसे होश ही नहीं... जाते जाते कबीर ने कहा था," सुनो मुझे कुछ हो गया तो तुम ये वर्दी पहन लेना..." वो उस खाकी वर्दी को पागलों की तरह देखे जा रही थी..!
इंदु उपाध्याय पटना
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