सभी महिलाओं को समर्पित एक हास्य
सुर्खी की अब जरूरत क्या ,
अब तो मास्क लगाना है ।
नाखूनी की जरूरत क्या,
जब दस्ताने में जाना है।
फेशियल की जरूरत क्या,
पार्लर तो नहीं जाना है
उबटन से काम चलाना है ।
कंगन की अब जरूरत क्या,
सिर्फ दान को हाथ बढ़ाना है
सोलह सिंगार की जरूरत क्या,
मुस्कान से काम चलाना है।
गहनों की अब जरूरत क्या ,
गजरो से काम चलाना है।
कजरे की अब जरूरत क्या ,
नजरों से तीर चलाना है।
सब ने घूंघट छोड़ दिए थे,
अब घूंघट में आना है ।
जग वालों की जरूरत क्या,
खुद को नजरों में उठाना है।
प्रेम ही श्रंगार है अब,
इसको ही तो बढ़ाना है ।
औरों को अब रिझाना क्या,
अब खुद से खुद को मिलाना है ।
अब अपनी असली सुंदरता से ,
अपने प्रियतम क बहलाना है ।
स्वरचित -आरती शर्मा, देहरादून
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