पाँव में जन्नत है जिसके, जिसने है पैदा किया।
अपनी उस पहली मुहब्बत को मैं कैसे दूँ भुला।।
मुनहसिर जिसके बिना पर है ख़ुदा का ये महल।
ग़ौर से देखो, दिखेगी माँ और बस माँ की दुआ।।
तोड़ने वालों ने तो हर बार तोड़ा है मुझे।
वो तो मेरी माँ है जो बस जोड़ देती है सदा।।
लौट जाती हैं बलाएँ दर से मेरे देख ये।
माँ ने मेरे सर पे अपना हाथ है रक्खा हुआ।।
ग़ैर मुमकिन है 'अकेला' हासिल-ए-मंज़िल न हो।
हर क़दम पर माँ अगर तुमको दिखाए रास्ता।।
अकेला इलाहाबादी
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