मेरी माँ
मै हूँ हिस्सा आपका ,
जब भी
सामने आया आइना
दिखता चेहरा
साफ सा
हर पल,हर क्षण,
मै उसमे हूँ
वह मुझमें हैं
आईना मध्य मे है
मै इस पार ,
माँ उस पार
कभी भी नहीं है,
दूरी हमारे मध्य ,
हम हैं, सदा साथ-साथ ,
उनका अक्स रहता है
सदा ही मेरे मन में
मै कृती हूँ वो प्रकृति है
प्रकृति से कृति हुई
उत्पन्न हुआ ये
अनुपंम संयोग
पर क्यों लिखा भाग्य ने
ये वियोग
संसारिक रिश्तों की
भीड मे खो गया
जीवन
अब वो ही मेरा प्रारम्भ और
वो ही मेरा अंत ,
जीवन सीमित ,यादे अन्नत,
घनी धूप मे ठंडी छाँव
यहीं है,
मां आ बैठो
मेरे छोटे से
दिल के गाँव।
मै और मेरी माँ
कुमारी अंकुर तिवारी "भोपाल
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