माँ-अन्नपूर्णा

माँ ! प्यारी माँ!
 तुम्हे याद नहीं करती मैं!
कैसे करूँ याद !
याद करने के लिए तुमसे दूर भी तो होती !
कहाँ हो पायी मैं  दूर,
 आज भी मेरे पास हो !
मेरी साँसों में प्राण बनकर,
मेरी आत्मा में परम शक्ति बनकर,
मेरे रोम -रोम में हो ,
मेरी धमनियों में रक्त बनकर,
मेरी उम्र में आशीर्वाद ,प्यार,
दुलार, ममता की शीतलता बनकर,
कभी तुम मुझसे दूर हुई नहीं,
मैंने महसूस ही नही किया ,
तुम्हारा पास न होना ,
समय के थपेड़ों ने जब भी सताया,
माँ ! मैंने हमेशा तुम्हे अपने पास पाया,
लोग कहते है 
मैं तुम्हारी प्रतिकृति हूँ
क्या ये सच है माँ ?
मुझे नही लगता !!
माँ तुम जैसी कभी नही हो सकती ,
तुम्हारा धैर्य , तुम्हारा स्नेह ,
तुम्हारी छुअन, तुम्हारी मुस्कान , 
कहाँ से लाऊँ ? 
नहीं भूली वो पल , जब तुमने 
आँखे बंद करते करते मुझे देखा था
और मुस्कुराई थीं ! 
आह! मन को भेद गयी थी वो मुस्कान! 
कह रही थी कि आँसू न गिराना ! 
तुम्हे मेरी सीख याद है न ! 
और तुमने तन को त्याग दिया ! 
आ बसी मेरे मन के भीतर ! 
तुम मेरी माँ !! 
मेरी प्रेरणा , मेरा संबल ! 


रचनाकार 
अन्नपूर्णा बाजपेयी अंजू
कानपुर



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