माँ सृष्टि पर भगवान का सर्वश्रेष्ठ सर्जन है ,
‘ माँ ‘ शब्द में ही सारे ब्रह्माण्ड का दर्शन है ।
ममत्व का महासागर व वात्सल्य का है वैभव ।
माँ हमें स्नेह सलिला में स्नान कराती है सदैव !!
माँ सत्य,समर्पण,सहनशीलता की वनिता है ,
कुसुम -सी हृदया , प्रेम करुणा की सरिता है !!
त्यागी , तपस्विनी , तरुवर की शीतलता है !!
वे उर उर्वरता, ऊर्जित,ऊर्मि की शालीनता हैं ,
घर के सदस्य माँ के हृदय वीणा के तार है !
सबके सुख - दुःख के सरगम की झंकार है ।।
माँ के जाग ने से सारा गृह सजीव- सा लगता है ,
उनके सोने से सब-कुछ निर्जीव – सा लगता है ।।
ग़म पी के खुशियों को बाँटना माँ का कर्म है ,
सबको चाहना उनके जीवन मंत्र व धर्म है।।
निस्वार्थ नेह निर्मल नैन में नित्य बरसाती है ,
प्रेम पीयूष का पेय हमें कायम करवाती है ।।
बनके स्वयं धागा सब पुष्पों को पिरोती है !
समभाव का थाल सबको प्रेम से परोसती है !!
दूसरों के दर्द से उनकी साँसें आहें भरती हैं !
सारी रात ममत्व के मरहम से घाव भरती है ।।
माँ के सारे तन मन धन सबको हैं अर्पण ।
फिर भी नहीं जमा किया किसी का समर्पण ।।
पूरे श्रद्धा भाव से एकबार झुककर देखो !
माँ के चरणों में ही है जन्नत का सुख परखो !!
माँ के आशीर्वाद से नसीब भी बदल जाते हैं ।
माँ के प्रेम के आगे प्रभु भी झुक जाते हैं ।।
डॉ . भावना एन. सावलिया राजकोट( गुजरात )
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