माँ-डॉ माया

माँ भी तुम पिता भी"



        मैने जब दुनिया देखी
मां को कभी न देखा ।
       मात पिता का प्यार हमेशा
पिता की आँखों में देखा ।।


      पिता की उंगली थाम के मैने
धीरे धीरे चलना सीखा ।
         माँ की मृत्यु के बाद
आपके साथ ही जीना सीखा ।।


        पाँच वर्ष की हो गयी मैं
तब पिता की हो गयी शादी ।
     मिला न उनका प्यार तभी से
छिन गयी बचपन की आज़ादी ।।


     पिता पराये हो गए तब से
कर न सके वह प्यार मुझे ।
    शायद मन मे रहा भी होगा
कर न सके इजहार मुझे ।।


      उम्र प्रेम जल बिन
 सींचे ही बढ़ जाती है ।
       पिता प्रेम से वंचित
अपूर्ण सी रह जाती है ।।


      तुम्ही माँ हो मेरी 
और पिता भी तुम्ही हो ।
     प्यार का उमड़ता सा 
सागर तुम्हीं हो ।।


      पर मेरी बदनसीबी ने
तुम्हें ही न पाया ।
      अफ़सोस है जो रहकर भी
मिल ही न पाया ।।


डॉ माया शुक्ला



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