माँ-ज्योति किरण

माँ के प्रेम का कोई अंत नही लेकिन माँ की ममता चार प्रकार से  महसूस होती है:-


१. स्मरण से, २. दृष्टि  ३. शब्द से, ४. स्पर्श से।


 स्मरण से :- जैसे कछुवी रेत के भीतर अंडा देती है पर खुद पानी के भीतर रहती हुई उस अंडे को याद करती रहती है तो उसके स्मरण से अंडा पक जाता है। ऐसे ही माँ  की याद करने मात्र से बच्चो के समक्ष माँ  का की कही बाते परिपकव बनाती है ।जान देती है । इसे माँ का स्मरण प्रेम कहते है ।


२. दृष्टि से :- जैसे मछली जल में अपने अंडे को थोड़ी-थोड़ी देर में देखती रहती है तो देखने मात्र से अंडा पक जाता है। ऐसे ही माँ की ममतामयी  दृष्टि से बच्चो  को  अमूलय प्रेम प्राप्त  होता है। इसे माँ का दृष्टि  प्रेम कहते   है।


३. शब्द से :- जैसे कुररी पृथ्वी पर अंडा देती है, और आकाश में शब्द करती हुई घूमती है तो उसके शब्द से अंडा पक जाता है। ऐसे ही माँ  अपने शब्दों से बचचो को ज्ञान कराती   है। यह माँ का  शब्द प्रेम   है।


४. स्पर्श से :- जैसे मयूरी अपने अंडे पर बैठी रहती है तो उसके स्पर्श से अंडा पक जाता है। ऐसे ही  हाथ के स्पर्श से बच्चो  को माँ की ममता प्राप्त  हो जाती  है। इसे स्पर्श प्रेम कहते है ।
इन्ही चार शब्दो ।मे माँ का पूर्ण अस्तित्व समाया है ।
सादर प्रणाम समस्त माओ को।


ज्योति किरन रतन लखनऊ


 



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