पिता हैं परमेश्वर
जननी हैं जगत
कैसे न करु मैं
इसकी आवभगत
माँ मैं पंक्षी हूँ। तेरे पिंजरे की,
कैसे भरुँगी उडा़न जिन्दगी की?
मुझे पंख फैलाने को ,
खुला आँगन तो दे ।
माँ मुझे देर हो गई है
उठने में ,
पर अभी रात बाँकी है।
कल सुबह के लिऐ तैयार होने तो दे।
कल क्या होगा किसने देखा? ,
माँ मुझे आज तो जी लेने दे।
मैं जानती हूँ,कुछ खास नहीं मुझमें,
हुनर है जाबाज नहीं मुझमें।
ऐक एहसास तो कर लेने दे।
माँ मुझे आज तो जी लेने दे।
अकेली हुँ मैं ,
बदहवास हूँ।
कोई जान न सका,
कि प्यास हूँ।
आस हूँ मैं ,
ऐहसास हूँ मैं।
जो इंतजार से मिले ,
वो प्यास हूँ मैं।
ऐक बेबस माँ की ,
साँस हूँ मैं......।
ऐक बेबस माँ की,
साँस हूँ मैं......।
खुशबू दिल्ली
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