माँ-किरण


माँ शब्द में ही नीहित है
ब्रह्मांड का सम्पूर्ण सार 
करती भरण पोषण रक्षण 
ममत्व के आंचल में सँभाल 


रूप त्याग तप न्याय धर के
वो देती सदैव उत्तम संस्कार
नीति-विधि, आचार-विचार
का देती वो परिपूर्ण  ज्ञान


माँ जीवन की प्रथम गुरु 
दे समुचित जीवन ज्ञान  
काँटे जीवन के चुनकर
करती पथ को आसान


ममता माँ की समझाना 
नहीं जग में है आसान
पूत कपूत हो जाए भले
बदलता नहीं है व्यवहार


माँ की लोरी में बसता है
अनहद का सा मधुर राग
भाव-विभोर हो गाती है
वो रात-रात भर जाग


           ----©किरण बाला 
                  (चण्डीगढ़)


 



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