ऐ माँ तुम कितनी अच्छी हो
तुम ही हो ममता का सागर
तुमपर ही निर्भर सारा घर
मेरी पीड़ा जो हर लेती
तुम ही हो लोरी के वे स्वर
सच कहती हूँ इस दुनिया में
एक तुम्हीं हो जो सच्ची हो
ऐ माँ तुम कितनी अच्छी हो।।
घर भर की खातिर तुम जीती
अपने आँसू छुपकर पीती
प्रेम सर्वदा बाँटा सबमें
लेकिन कभी नहीं तुम रीती
पगी-पकी हो राग - त्याग में
किंतु स्वार्थ में तुम कच्ची हो
ऐ माँ तुम....
माँ तुम तुलसी का चौरा हो
पीपल, बरगद हो, औरा हो
हो तो मेरी माँ तुम लेकिन
मेरे लिए अदरगौरा हो
तन से चाहे वृद्ध हो गई
पर मन से तुम बिल्कुल बच्ची हो
ऐ माँ तुम....
माँ तुम तुलसी की चौपाई
लख रोगों की एक दवाई
बीज-बीज को वृक्ष कर दिया
किंतु न इक पल भी सुस्ताई
अच्छी तरह देख कर देखा
अच्छे-अच्छे से अच्छी हो
एक तुम्हीं हो जो सच्ची हो
ऐ माँ तुम.....
माधवी चौधरी
भागलपुर
बिहार
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