माँ-माधुरी


माँ के अस्तित्व की है महिमा निराली,सब रिश्तों से है बलशाली,
सहकर कष्ट स्वयं औरों को सुख देती,सन्तान के सारे कष्टहरलेती।


एक अश्क़ पर सन्तान के सहम वह जाती,
हो खड़ी आगे स्वयं, ढाल उसकी बन जाती।


बिन बोले ही सब वह समझ जाती,
तभी तो है वह मातृ शक्ति कहलाती।


अमृत अपनी छाती का मन्त्रमुग्ध हो पिलाती,
ज़िगर के टुकड़े की मुस्कान पर बलि -बलि जाती।


वही ज़िगर का टुकड़ा है आज उदासीन उसके लिए,
एहसान फ़रामोश! भूल गया क्या कुछ न किया मां ने उसके लिए।


माँ की खाँसी डालती ख़लल आनंद में उसके,
भूल गया कैसे माँ एक छींक पर उसकी लगाती थी सीने से उसे।


ले जाती थी माँ जिस लाल की उंगली थामे भरी सभामें गर्व से,


उसी लाल को शर्म आती है मित्रमण्डली संग माँ के देहातीपन से।


भरी सभा में पुकारती थी माँ लाड से ,"मेरा कन्हैया",
आज बैठ बड़े ओहदे पर ,बेटे को आती लाज ,कहते मैया।


पत्नी के आते ही घर में, माँ अब पराई हो गई,
सीने से लग मिलती दुआएँ ,सब बेकार अब हो गईं।



माँ तो माँ है देती है हर हाल में दुआएँ,
हर हाल में ख़ुश रहना लाल मेरे ,लेती हैबारम्बार बलाएँ। 


माधुरी भट्ट


रोड नम्बर ---1D
राजेन्द्र नगर पटना -16
बिहार



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