ईश्वर की सर्व श्रेष्ठ कृति
हर मौसम की बहार है माँ
गुलों के बीच कचनार है माँ
तन मन को कर दे शीतल
मेघों से छलकी फुहार है माँ
दर्द और गम की दवा है माँ
हर एक बात की अदा है माँ
खुदा को भी नाज़ जिस पर
ऐसा ही एक करिश्मा है माँ
निर्मल और नादान है माँ
खुद से ही अंजान है माँ
सत्यता का बोध कराती
धरती पर भगवान है माँ
प्यार की परिभाषा है माँ
जीने की अभिलाषा है माँ
ह्रदय में जिसके सार छुपा
शब्दों में छिपी भाषा है माँ
इन्द्रधनुष की रंगत है माँ
सन्तो की ही संगत है माँ
देवी रूप बसा हो जिसमे
जमी पर ही जन्नत है माँ
फूलो का अहसास है माँ
जीवन का विश्वास है माँ
रिश्तों में जो भरें माधुर्य
ऐसा ही"मधु"मास है माँ
||मधु टाक||
0 टिप्पणियाँ