मां खड़ी है, कि ममता खड़ी है
खामोशी खड़ी है,कि कसक पीड़ा की
इंतजार खड़ा है ,कि झुर्रियों का लोथड़ा
कौन खड़ा है द्वार सटे
मन अब तू ही बता
गोद की गर्माहट कि चिंता की लकीरें
भूखों को खिला खाली थाल की खनक
कि समर्पण का ममत्व लुटाता
क्यों याद आता नहीं
मिलते ही पराई बाहों का सहारा कौन है अपना
वह पराया या राह चलाना सिखाती उंगलियां
कौन खड़ा है
सच खोजने का साहस
किस अंधेरे में गुम हो गया
शरीर सुख की हवस में खो गया ,
ममतामई आंखों में वो भूखा- प्यासा
जिसके आंचल में थे
सुख के दो पल
कई जटिल प्रश्नों के सुगम हल
आज भी नहीं करता शिकायत
बस सदा पूछती
कैसा है बेटा
हद तो तब हो गई
पत्नी ने पूछा क्यों जी
आपको याद नहीं आती मां की
अपनी तनया स्कूल जाती है
इतनी दूरी भी मझे खूब सताती है
सोचने लगा फिर मन
अब तू ही बता कौन खड़ा है द्वार को सटकर
वह परायी मां बनकर या
खड़ी है मां अपने बेटे को
चिरकाल बाद दरवाजे पर पाकर
मां सच मां होती है
मेरी मां सबकी मां
.......इति....
नरेंद्र परिहार नागपुर महाराष्ट्र
9561775384
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