माँ-नीता

 


मां तेरे संघर्ष का
सफर तभी जान पाई
बनी जब स्वयं मां
मन में ममता भी आई


सहनशीलता को तेरी
अब महसूस किया
टेढ़े मेढ़े रास्ते पर
जब मैंने सफर किया


तेरे दिए संस्कारों से
घर का आंगन सजाया
बड़ा मन मेरा जब
परवरिश पर तेरी
मुझे नाज़ आया


स्नेहा रूपी दीप में
तूने जलना भी सिखाया
विपरीत हुई जब हवा
यह हुनर काम आया


पास तेरे बैठकर
जब भी मैं रोई
हाथ सिर पर रखा
पाया वरदान सा कोई


मां तेरा मोल नहीं कोई
जग में अनमोल है तू
मां की ममता का यहां
सानी नहीं कोई।
 मां की दुलारी
                         


  नीता चतुर्वेदी विदिशा


 



एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ