माँ-पाखी


तू गंगा  धार  सी पावन ,
कलियों का कोई उपवन ।
सिमट के तेरी गोद में ही 
पूर्ण होता शिशु का जीवन ।


सारे दुख झेलती सदैव 
राह सुखों की खोलती ।
गल्तियों पे भी सदा जो 
मिष्ठ वाणी ही बोलती।
भूलते जो उपकार तेरा 
सूख जाता उनका सावन।
पूर्ण होता शिशु का जीवन।


दुख सभी वो भूल जाते
देव भी चरण छूने तरसे 
सभी तेरे द्वारे हैं आते 
देख तुझे सब हैं हरषे 
जर्जर दुख की पोशाक 
सिलती वस्त्र की सीवन 
पूर्ण होता शिशु का जीवन 


सभी तेरे द्वारे 


माँ.
तू गंगा  धार  सी पावन ,
कलियों का कोई उपवन ।
सिमट के तेरी गोद में ही 
पूर्ण होता शिशु का जीवन ।


सारे दुख झेलती सदैव 
राह सुखों की खोलती ।
गल्तियों पे भी सदा जो 
मिष्ठ वाणी ही बोलती।
भूलते जो उपकार तेरा 
सूख जाता उनका सावन।
पूर्ण होता शिशु का जीवन।


दुख सभी वो भूल जाते
देव भी चरण छूने तरसे 
सभी तेरे द्वारे हैं आते 
देख तुझे सब हैं हरषे 
जर्जर दुख की पोशाक 
सिलती वस्त्र की सीवन 
पूर्ण होता शिशु का जीवन ।


पाखी



 


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