कलम बगलें झांक रहा है।
पन्ना चुप हो के ताक रहा है।
*
माँ की ममता को शब्दों में कैसे
पिरोऊँ, मन ये सोच रहा है।
*
प्रेम,प्रीत तो बहुतों ने रचा,ममता
रच,इक माँ का दिल कह रहा है।
*
शब्द होकर भी शब्द नि:शब्द है
उपयुक्त शब्द के द्वंद्व में खो रहा है।
*
जागते हुए भी मन शब्दों के जाल
में उलझकर ,थका जैसे सो रहा है।
*
एक मधुर ध्वनि से तंद्रा भंग हुई देखा
फोन में एक नाम चमक रहा है।
*
अहा ! दिल में खुशी,आँखों में चमक थी
फोन में "माँ" जो अंकित हो रहा है।
*
टक ; हैलो ! प्रणाम माँ ..............
@पूनम झा
कोटा,राजस्थान
0 टिप्पणियाँ