कितना सुन्दर रूप तुम्हारा
जैसे गंगा जल की धारा ,
शान्त,शाश्वत इक रूप बेल सा
कर्तव्यनिष्ठा से परिपूरित था
हम ढूंढ रहे थे,तिनका-तिनका
रूप तुम्हारा किससे मिलता
दुनिया की हर मूरत देखी,
रिश्तों की हर सूरत देखी ,
हर रिश्ते से दूर खड़ी फिर
हम ने माँ की ममता देखी ,
जटिल पंथ में धैर्य बंधाती
हमने राह बनाती देखी ,
चूम अश्क को चुपा दिया
फिर कुछ यूँ समझाती देखी,
विराट-रूप और अदम्य साहस की
हमने उसमें मूरत देखी,
असीम शक्ति की मालिक थी
पर घर में हमने नवती देखी,
सृजन सौंन्दर्य की मूरत थी
हम ने त्याग में तपती देखी,
अपने बच्चों की खातिर वो
तिनका तिनका खपती देखी,
मेरे मन के मंदिर में
माँ, तुम गंगा बन कर रहती हो ,
"चरण" तुम्हारे तीरथ है तुम
इतना, सब कुछ सहती हो ,
" हे माँ " तुमको करें प्रणाम
कर दें तुम पर सब कुर्बान,
शान्त शाश्वत रूप तुम्हारा
प्यार से घर "सींचा" सारा ,
उस माँ को हम किससे पूजें
जो खुद एक "गंगा जल" की धारा,
रेखा दुबे
विदिशा मध्यप्रदेश
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