भारत जैसे महान देश में जन्म लेना बहुत गौरव की बात है।विशाल आबादी वाले इस देश का संविधान सभी को स्वतंत्रता से रहने का अधिकार प्रदान करता है।अनके वर्गों में बंटे इस देश में सबको समानता का अधिकार भी प्राप्त है। लेकिन क्या ऐसा वास्तविकता में भी है? ये सवाल उस वर्ग के लिए है जिसकी पीड़ा कोई नहीं समझता,जो अपने दर्द किसी को नहीं बता सकता,जिसे सारे अधिकार देकर सम्मान सहित छीन लिए जाते हैं,उस वर्ग का नाम है मध्यम वर्ग!
उच्च वर्ग अपनी दौलत से सबकुछ के साथ सबको भी खरीद कर अपना काम निकालने में संभव हो जाता है,दूसरी तरफ़ निम्नवर्ग है, जिसके जीवन की चिंता सदैव सरकार करती है। बचा मध्यम वर्ग जिसके पास ना तो उच्च वर्ग के समान दौलत है,और ना ही गरीबी,सरकार है लेकिन चिंता करने के लिए नहीं सिर्फ कर लगाने के लिए।
मध्यम वर्ग की सबसे बड़ी समस्या ये बन गयी है कि उसे दिखना तो उच्चवर्ग जैसा है,रहना मध्यम है,और उम्मीद की नज़रें निम्न वर्ग के समान उस सरकार पर होती है जो इसे गन्ने के समान रोज मशीन में लगा कर रस निकालती है।
इनकी इच्छाएं तो आसमान पर होती हैं,पैर जमीन पर और कमाई पाताल में।
भगवान भी इनकी नहीं सुनता उसके दरबार पर भी इन्हीं की भीड़ रहती है,क्योंकि एक वर्ग वी. आई. पी दरवाज़े से अंदर जाता है,दूसरे को बाहर ही मिल जाता है।अंदर जाने के लिए कतार बनाने की आवश्कता एक ही वर्ग को है।
शिक्षा के क्षेत्र में भी यही हाल है इनका।
एक वर्ग उच्च शिक्षा के लिए संस्थाओं को खरीद लेता है,दूसरे के लिए सरकार तैयार है, बचा ये बेचारा जो ना तो खरीद सकता है ना खुद बिक सकता है।
खाना खाने के लिए इसे जाना तो पाँच सितारा होटलों में ही होता है पर उसके पास वाले बने ढ़ाबे पर खाकर उसके सामने खड़े होकर सेल्फ़ी लेकर भी खुद को खुश कर लेता है। जब कहीं जाना हो तो ये घर से तो कैब करके ही जाता है,पर स्टेशन से एक्सप्रेस के लोकल डिब्बे का टिकट खरीदने में भी संकोच नहीं करता।
हाय रे बेचारा मध्यम वर्ग..कितनी अनकही कहानियों को लेकर चलता है अपने साथ,आखिर कौन सुने इसका दर्द...
ज्योति शर्मा जयपुर
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