मजदूर-प्रिया सूफी

एक दिन आपका



खाली कारखानों में
सामान छोड़ जाते हो
तुम भी कोई 
शहतूत हो क्या
जहाँ गिरते हो 
निशान छोड़ जाते हो।
तुम्हारे दम से रोशन हैं
सुबह की रौनकें सभी
तुम्हारे श्रम से भीगती
शाम गहराती है
जाने कौन रूठा है तुमसे
जाने किस का श्राप है
खाली खाली जमीं और
आसमान छोड़ जाते हो
तुम भी कोई 
शहतूत हो क्या...
जब भी गिरते हो
निशान छोड़ जाते हो।
तुम बिन खिलते फूलों का
विन्यास फीका फीका है
लहलहाती फसलों का
उजास फीका फीका है
कल कारखानों का
संसार फीका फीका है
कैसा नया युद्ध तुम
कट कर तलवारों से
म्यान छोड़ जाते हो
तुम भी कोई शहतूत ही क्या
जहां भी गिरते हो
निशान छोड़ जाते हो।
तुम्हारे बिन चिमनी का
धुंआ उदास है
हथौड़ा उदास है
पाना उदास है
नट बोल्ट रुठ गए
टायर उदास है
ढाबे की दाल का
करछुल उदास है
यह कैसा कहर है
यह कैसी आग है
झुलस तुम रहे हो
सारा आलम उदास है
बिना कुछ कहे भी तुम
बयान छोड़ जाते हो
तुम भी कोई शहतूत हो क्या
जहां गिरते हो
निशान छोड़ जाते हो।


डा0 प्रिया सूफी होशियारपुर पंजाब



 


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