मजदूर-रेखा


सुनयना ने तड़प कर रवि की ओर देखा और अपने स्वर को संयत करते हुए बोली रवि क्या तुम बता सकते हो तुम्हारी जिंदगी में मेरी क्या अहमियत है ?..पत्नी या  प्रेयसी अथवा रोटी वाली ,कपड़े वाली,झाड़ू-पोछा, बर्तन वाली  या तुम्हारे बच्चों की आया तुम्हारे परिवार को जोड़कर रखने वाली एक बेजान कड़ी,जिसकी अपनी कोई अहमियत नहीं होती, अपना कोई वजूद नहीं होता,अपनी जिंदगी का आधे से ज्यादा समय तुम्हारे साथ गुजारने के बाद कम से कम इतना तो जान ही सकती हूं कि तुम्हारी जिंदगी में मेरा क्या स्थान है?.. मैं अच्छी तरह जानती हूँ  रवि  अब तुम फिर से वही बात दुहराने वाले  हो सुनयना कैसी बात करती हो यहां सब कुछ तुम्हारा ही तो है। घर बार बच्चे परिवार तुम्हारे बिना पत्ता भी नहीं  हिलता है जब तुम घर में नहीं होतीं तो सारा घर अव्यवस्थित हो जाता है तुम एक आत्मा की तरह   बसती हो इस घर में।
 घर में घुसते ही हर व्यक्ति तुम्हारी ही पुकार करता है अब इससे ज्यादा तुम्हें और क्या चाहिए?सुनयना:- रवि!.. क्या आज तुम मुझे जवाब दोगे?.जीवन के किस मोड़ पर तुमने मेरे स्वभिमान को जिंदा बनाये रखने की कोशिश की है?.
कब तुमने कहा आज का दिन सिर्फ और सिर्फ तुम्हारा है?..ऐसा कौन सा दिन है जब मेरी हाथों की मुट्ठी के पैसों का हिसाब तुम्हारी आँखों ने ना किया हो?..वो कौन सा दिन है जब मेरी आँखों के आंसुओं पर तुम्हारे प्रश्नचिन्ह नहीं लगे?..क्या तुम्हारा यह कहना सच है?.. कि!. मैंने तुम्हें दुनियाँ का हर सुख दिया है सुनयना जिसकी तुमने कभी कल्पना भी नहीं कि होगी बोलो रवि क्या यह सच  है बोलो ना चुप क्यों हो ?
रवि :-एक धावक की तरह सुनयना पर टूट पड़ा। हाँ, हाँ इसमें गलत ही क्या है सुनयना मैंने तुम्हें इस घर की रानी बना कर रखा है एक पैसे की भी कमाई करती हो तुम बहार जाकर दो पैसे कमाकर लाओ सब भूल जाओगी समझी दो दिन में सब अकड़ निकल जायेगी । सुनयना:-जलती हुई ज्वाला में पड़े हुए घी की तरह धधकते हुए बोली चुप करो रवि तुम रानी नहीं सिर्फ एक मजदूर को रखे हो इस घर में जो बिना तनख्वाह लिए ही तुम्हारे प्रेमजाल का गुलाम बनकर जी रहा है आज तीस साल की मजदूरी के एक एक पल की  कीमत मांगूगी तो क्या दोगे?..अवाक रवि को लगा जैसे वह कर्ज के बोझ से दबता जा रहा है।



रेखा दुबे तिरूपति पैलसे विदिशा



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