असहय पीड़ा का मधुमास
व्याकुल पीड़ा का मधुमास,
मिटती क्यों नहीं प्यास।
श्रमरत रहूँ दिवस औ रात,
फिर भी जीवन है उदास।।
कहती होकर पलकें अधीर ,
खिलेंगें सुखों के पलास,
व्याकुल पीड़ा का मधुमास।।
वेदनामयी अमिट लकीरें,
घेरती देह को धीरे।
पीठ व पेट चिपक हैं जाते,
मिले मंजिल नदी तीरे।।
जलाऊँ कब तलक विकल साँस,
व्याकुल पीड़ा का मधुमास।।
घोषणा के मोहक जाल में,
मजदूर मरे अकाल में।
किसको मेरी फिक्र भला है,
विवश जीता हर हाल में ।।
भला निर्बल किसका खास,
व्याकुल पीड़ा का मधुमास।।
साधना कृष्ण
लालगंज,वैशाली
बिहार
0 टिप्पणियाँ