मकड़ जाल-रीता

बिखरे सामा की तरह हो गयी है जिंदगी
कभी यहाँ कभी वहा खो गयी है जिंदगी
रिश्तों में तुरपन करते
बसर हो रही है जिंदगी
बनेगा वो सहारा मेरा
बस मकड़ जाल बुन रही है ज़िंदगी
अपना किसे कहे
साया भी साथ  छौड़ देता है
जब अस्त हो रही हो  ज़िन्दगी
बया कर तो दो हकीकत
ताउम्र ज़ख्म देती है जिंदगी
कोई किसी का नही होता रीता
अपना सफर  तन्हा तय करती है जिंदगी
अब बस पिंजरे से मुक्त होने
को तड़फ  रही है ज़िन्दगी


 


डा0 रीता शर्मा विदिशा



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