आयी है जुबाँ पर
'मन की बात'
आज के परिवेश में
जो हवा अब स्वयं
चैन की सांस ले रही है।
धूल धुएं में ढके
पहाड़ अब दिखने लगे हैं
पक्षी खुले आसमाँ
को सच में इस्तेमाल
कर पा रहे हैं।
घर में बैठे सभी जन
आँगन में गौरैया को
देख पा रहे हैं।
सुबह सुबह पंछियों
के कलरव के साथ जो
स्वाद चाय का दूना होने
लगा है।
रसोई में नित नए
पकवानों की महक
जो आ रही है।
दादी नानी जो
फिर से परियों
की कहानी सुना रहीं हैं
चाचू फिर बनने लगे हैं घोड़ा
बुआ भी बनाती है
खाना जो थोड़ा थोड़ा।
सब मिल जुल कर
जो साथ बैठने लगे हैं।
काश ये सिलसिला
यूँ ही बस चलता रहे
तब भी जब
कोरोना का दौर थम जाए
जीवन नए दृश्य दिखाए
तब भी घर हो ऐसे ही गुलज़ार
दोबारा न बन जाये जीवन व्यापार।
आइए पर्यावरण शुद्ध रखने
का हम सब लें दृढ़ संकल्प।
और परिवार सहेजने का भी
क्योंकि परिवार का नहीं है कोई विकल्प।।।
स्वरचित
डॉ पूजा मिश्र #आशना
0 टिप्पणियाँ