मेरी पहली रेलयात्रा-अमित

रेल का नाम सुनते ही घर की  बाल टोली झूमकर नाचने लगी थी।सबने एक दूसरे को पीछे से पकड कर सीटी बजाकर झुकझुक करते रेल बनाकर खेलना शुरू भी कर दिया था।


      महू में बाल मेला लगा था।दादा ने सोचा चलो बच्चो को रेल से महू में मेला दिखा लाता हूं।हम सब तैयार थे।स्टेशन पर पहुंचे ।चाय वाला, पकोडे वाला,समोसे वाला,पानी सबकी आवाज गूंज रही थी।आसपास हरा भरा बगीचा था।मुझे उत्सुकता थी रेल कैसी स्टेशन पर आकर रूकती है।
कुछ समय बाद ही रेल की तीखी सीटी तथा काला धुंआ छोडते रेल रूकी ।हलचल को देखकर मैंने घबराकर दादा का हाथ पकड़कर रखा था।सभी गाडी मे बैठे।एक बालक जो फटे हाल था पास में आया और हाथ आगे कर कुछ मांगने लगा था।हम तो मेला देखने जा रहे थे ।पानी की बाॅटल के अलावा हमारे पास कुछ नहीं था।वह दृश्य अब सामान्य हो गया जिसका मलाल मन में आज भी हैं।
        मेले में आनन्द लेकर वापस रेल में बैठे तो मुझे वो ही बालक दिखाई दे रहा था।
किन्तु मैंने देखा दो बहने सफेद वस्त्र पहने रेल में आई और हम बच्चो के साथ बैठ गयी ।वे बहुत स्वच्छ और शान्त लग रही थी।उन्होने कहा ओम् शान्ति ।हम उन्हे देखने लगी उस समय जो उन्होने समझाया कि मैं आत्मा हूं ।परम पिता शिव की संतान हूं ।बच्चो इसे पक्का याद रखो।मुझे समझ मे नही आया पूछने पर उन्होंने मेरे सिर पर हाथ रखा उनका प्यार मुझे आज भी याद है।
घर पर पहुंचते ही दादा का आदेश था।मेले पर रेल पर निबन्ध लिखो।इनाम भी मिलेगा ।मैने उन बहनो की बातो को भी निबन्ध में लिखा था।याद आता है वह निबन्ध स्कूल में पुरस्कृत हुआ था ।


अमिता मराठे 
इन्दौर 
मौलिक



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