मॉ-सतीश

 


मॉ शब्द से शुरू हाेती 
हर दिन की शुरुआत 
इन्ही के हाथाे मिलता 
हमे  अमृत रूपी मीठा प्यार


मॉ की ममता सिखाती हमे 
 सदभाव के साथ सद्गुण यहॉ 
मॉ के आंचल मे ही मिलता 
ईश्वर रूपी वरदान यहॉ 


मॉ की वंदना के लिये 
चाहे कितना भी लिख लाे 
 तृप्त नही हाे सकता हमारा मन 
मॉ इस शब्द काे साकार 
करने हेतु करता मै धरा के 
हर पिता काे भी नमन ।।


मॉ यह शब्द नही 
इसका बडा विस्तृत स्वरूप 
जिनके साथ है अभी मॉ 
वह पाते उसमे अन्नपूर्णा का रूप ।।


इन दिनाे सुनते रहते 
हम नितदिन
 वृद्धाश्रम की खबर 
मन कचाेटता है याराे 
 क्याे उतर गये हम
इतने निचले स्तर पर ।।


इतना बडा भी नही मै 
दे सकु सबकाे ज्ञान 
विंनती मेरी इतनी ही 
 जिन्हाेने दिया यह मानव जीवन 
बस कराे उनका 
दिल से सम्मान 
दिल से सम्मान । ।


 


सतीश लाखाेटिया 
नागपुर ( महाराष्ट्र).


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ