मैं मोहब्बत करता हूँ नहीं, मोहब्बत हो जाती है
लेकिन कोई निभाती नहीं शरारत हो जाती है
कभी श्याम दीवाना था, अभी अँचल दीवाना है
दिलों के क़ैद में खून की तिजारत हो जाती है।
अब तेरी यादों में मुझे नहीं होश व हवाश है
हर मोड़ में मुझे,तुझ से मिलाने प्रभु की आश है।
मुझे चाहने वाले बहुत हैं,कहीं दिल नहीं लगता
तुम्हीं पे मरता है वो दिल तभी तो होता हताश है।
अरमान हैं , तुम्हें पाने तभी तो याद करते हैं
इश्क़ को समझे हैं,तभी तो वक़्त बर्बाद करते हैं
जो इश्क़ को समझता,वो समझता दौलत को नहीं
दूर हो कर भी हम कभी नहीं फ़रियाद करते हैं।
तेरी मोहब्बत को पाने बड़ी उलझन में रहे
सनम तेरे रूप का ख़्याल हमेशा धड़कन में रहे
संत का रूप छोड़ कर पागल के रूप में रहते हैं
अब मिलने खड़े हैं धूप में , नहीं आंगन में रहे।
अनुरंजन कुमार "अँचल"
कवि/ शायर/ गीतकार
अररिया, बिहार
7488139688
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