मॉं-नूतन

सपनों में कुछ अलग सा लगता है ।
ममता व प्यार का एहसास तू है,
जिन्दगी जीने की ललक तू है,
शरीर के एक एक रगों में से तेरी,
ममता और प्यार स्नेह झलकती है।।
कैसे कहूँ-------
--सपनों में माँ का एहसास कुछ और ही होता है ।।
वो निश्चेष्ट सी अवलम्ब बनी सकुचाई सी।
मेरी ओर कुछ इस तरह देख रही थी ।
जैसे लग रहा था ढ़ेर सारी तमन्नाओं को ,
सिमटे लिये कुछ कहना चाह रही थी ।।
वो शायद अपने अंत:स्थल में भांप रही थी ।
न जाने कितने आरमान छिपे होंगे उसके मन  में,
वहीं पास खड़ी मैं भी कुछ सोच रही थी।।
तभी काले आसमाँ से धरा पर ,
कब से बिखेर रही थी।
चन्द्रमा अपनी चाँदनी को ,
देख मैं हर्षित हो रही थी।।
वक्त ने बार बार तकाजा किया था मुझसे ,
संभल जा अब तो संभल जा,
फ़िर भी अबोध मन मेरा सिर्फ,
आहें भर भर अश्रू धारा बहा रही थी।।
मालूम नहीं  कब से अपने अंक में ,
भरी हुई वो मुझको थी ।
यह एह्सास कर,
चैन की नींद मैं सो रही थी ।।
न जाने ये निर्मोही ,
क्यों ?
नींद हमारी खोल दी,
मैं तो अपनी माँ के संग सपनो की,
खुबसूरत दुनिया में जी रही थी ।।
तभी कोई उसे अलग कर मुझसे ,
जैसे छीन रहा था ।
मैं घबराई सी विस्मित निगाह भरे उसे ,
सुध बुध खो बैठी न जाने कब से मैं,
वहीं प्रतिबिंबित सा बन खड़ी देख रही थी ।
चेहरे पर एक सूकून सी,
 चैन भरी मूरत सी बन लेटी पड़ी थी,
लगता ऐसा मां अपनी ममता भरी लोरी को लय बद्ध सुना रही थी।।
मैं मां की आंचल की छांव में जैसे सुकून भरी चैन कि नींद सो रही थी।।



नूतन सिन्हा
पटना बिहार।


 



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