माँ तेरी यादो के झरोखे में अब
दिन कटते है मेरे
रो रो ऑंसू बहाऊ पर तुझे अब
मै ना पा पाऊं
मेरी माँ ऽऽऽमेरी मांऽऽऽ
जितने दिन तेरे साथ जिया
आज भी जीवन वहीं जीवन्त लगा
माथे पर देती थी तू रोज जो चुंबन
आज उतना प्यार ना अपनापन कहीं नहीं मिला
जीवन अधूरा लगता है
माँ तेरे बिन अब सूना सूना सा लगता है
मायके की डेहरी भाई भावज
के घर भी अब मैं पहेली
कैसा दिपक था तेरी ममता का
जो ऑचल था
वह स्नेह से भरा था
नाती पोतों के बढते परिवार में
बस तेरी बरगद सी वंशवृक्ष में
तेरी ही छाया तले सबका चमन बने
माँ मेरी माँऽऽ आजा तू स्वर्ग धाम से
फिर से बिठा ले गोदी में मुझको
कुछ डांट मार ले तू गलती पर तो
मीठी सी झिडकी आखों में थी
प्यार की खिडकी
बुखार आने पर रात दिन तेरा जगना
माथे पर पट्टी थर्मामीटर झटकने
फिर तेरा बुझा सा चेहरा
हमको आज याद आता है
तपती सी रातों मे आज अकेली
मै पडी
बस माँ अब रोते रोते तेरा चेहरा ही भाता है
आजा ना माॅ मान जा ना मान
सपनो की रातो पर अब मै जीती हूँ
बस माँ अब मै चौबीसों घंटे तेरे साये में रहती हूँ
मन का ये दिया बाती पर तेरा
ही प्रकाश लिये बस
अपनेपन की प्यास लिये मै सबमें
भटक भटक कर
तेरे ऑचल को मन से कभी ना
छोड पाती हूँ
तू मेरी माँ हसरतो में मां जीवन में मां
सब जगह तुझे पहले रखकर बस
तेरी याद को जीवन्त रखकर ही
अब मैं जी पाती हूँ
रेखा तिवारी बिलासपुर
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