मुरझाता बचपन दोषी कौन? अमिता

मुरझाता बचपन दोषी कौन?


"बचपन के दिन भूला न देना"
इस गीत की पंक्तियाँ बचपन की उस ऊँचाई तक पहुंचाती है जहाँ से कोई भी परिस्थिति हताश हो लौट जाती है ।तात्पर्य है बचपन ही हमें जीना सीखलाता हैं।इसीलिए बचपन को सावधानी पूर्वक सहेजना जरूरी है ।
संयुक्त परिवार में बच्चे अपने आप ही संस्कारित होते है।एकल परिवार में बच्चो को जल्द बड़ा होने व नये माहौल को समझने की जल्दी रहती हैं।वैसे भी पालको के पास बच्चो को समझने के लिए समय नहीं होता है।यह समस्या आज छोटे घरो से लेकर बंगले तक के बच्चो के लिए है।बच्चो की खुशहाली खतरे में है।
बचपन की यादो को हर कोई जब याद करता है तो आनन्द से भर उठता है ।बचपन की यादें मनुहारे गदगद कर देती है।सोनिया अपने पूरे परिवार के संग खुश है।किन्तु मनु स्वयं को अकेला समझ रही हैं।
कारण है आज हम बच्चो को जिन्दगी जीने के लिए नहीं प्रतियोगी बनने के लिए तैय्यार करते हैं ।खुली हवा मे नही मोबाइल इन्टरनेट पर झूलने के लिए तैय्यार करते है।मोहल्ले के दोस्त नहीं हैं।मोबाइल के दोस्त है।अपनत्व  प्यार वह ऊंची छलांग सभी विवशता में छिप गई है।बच्चो के लिए मां-बाप झूज रहे हैंं बच्चे समझदार बनने की कोशिश कर रहे हैं किन्तु उन्हे सही रास्ता बताने वाले लाख की कमाई में व्यस्त है। ऐसी स्थिति में बच्चो का मुरझाना स्वाभाविक ही है ।
बच्चे को जन्म देना आसान भी हो जाये किन्तु उसका बचपन बचाना कठिन हो गया है। गृहस्थी की बगिया खिले फूलो से सजती हैंं मुरझाने नहीं।
अतः ध्यान रहे योजना बध्य जीवन मेंं  कोमल बचपन का भी बचाने का मंत्र आवश्य होना चाहिए ।यदि बच्चे उदास है भूखे है या अनपढ़े है तो दोषी हम है।आसपास का वातावरण है।समाज है।एक बार  गया बचपन पुनः लौटकर नहीं आ सकता ।इसीलिए जीयो और जीने दो के मंत्र से बच्चो को खुशी की जिन्दगी बहाल करना जरूरी है।समय रहते सम्हालने में ही समझदारी होगी।


अमिता मराठे 
इन्दौर



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