स्मित अधरों पर राजती,मानो सुंदर चाप।
सधे स्वरों में सौम्यता,नित्य करे आलाप।।
मुख मण्डल जैसे करे,जीवन का आह्वान।
कह जाती निज रूप से ,कितना कुछ मुस्कान।।
उज्ज्वल वर्षा की लगे, जैसे पहली बूँद ।
हत-आशा के दौर में,उगती आँखें मूँद।।
मित्र-भाव प्रारम्भ का,यह सुदृढ़ सोपान।
कह जाती निज रूप से,कितना कुछ मुस्कान।।
खिलते बचपन का यही,निश्छल-पावन रूप।
कँपती सर्दी में लगे, ज्यों आँगन की धूप ।।
बनती इससे ही सदा, मानस की पहचान।
कह जाती निज रूप से, कितना कुछ मुस्कान।।
स्वरचित
डॉ पूजा मिश्र#आशना
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