पहली बार रसोई मे प्रवेश-ज्‍योति किरण

रसोई से सभी महिलाओ का ऐसा रिश्ता है जैसे ।चेहरे पर नाक और कान ।ना ना करते माता जी का आदेश हुआ मै चार दिनो के लिये गाव जा रही हूँ । तो खाना बनाने मे पिताजी की मदद करना ।और। छोटे भाई बहनो को भी खिलाना । मुझे काटो तो खून नही जैसी हालत हो  गयी । माताजी तो आदेश दे कर चली गयी । मैने भी जोश मे बटुई  मे दाल चढा दी । दुसरी मे चावल । आटा भी तैय्यार हो गया ।सब्जी भी काट कर रख दी । तब तक पता चला की जो दाल चढाई थी उसमे पानी नही डाला था ।चावल मे नमक हो गया ।
सुखी सब्जी के लिये जाने, कितनी बार  पानी मिलाया ।पिताजी ने ऊस सब्जी के पानी को दाल मे मिला कर दाल कों ठीक किया। और तब सब्जी सूखी बनी ।  रोटिया तो विश्व की धरोहर लग रही थी ।जिसको भाई बहनो ने  देश विदेश के राज्यो का नाम दे दे कर खाया । माँ के गाँव से वापस आने तक  सभी को मेरे द्वारा बनाये   स्वादिष्ट खाने का स्वाद मिलता रहा और मै लगातार अपनी पाककला से घर के लोगो पर यह  अत्याचार करती रही । माँ की वापसी पर  सभी ने कहा।दीदी से  बचा लो माते । पिताजी मौन भोजन करते रहे हमेशा ।तो उन्होने बेटी के बनाये खाने को बुरा नही कहा ।लेकिन भाई बहन आज भी याद करते है । ऐसी थी मेरी रसोई ।



 



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