पैसा-इंदु

मिलने लगा नया- नया पैसा आया तो उसे पैसे की गर्मी हो गई, प्रतिदिन होटल से खाना मंगाता ख़ुद भी खाता दोस्तों को भी लाता जब उनके खाने से बच जाता तो किसी को देने के बजाय सारा खाना फेंक देता। अब तो ऐसा प्रतिदिन का सिलसिला बन गया खुद मे ही मस्त रहता और दोस्तों के साथ खूब पार्टी करता..। दोस्त भी उसके आगे पीछे डोलते रहते, सोनू की तारीफ़ के पुल बाँधते नहीं थकते, यार कितना अच्छा है हम सबका कितना खयाल रखता है। कहीं जाता अपने दोस्तों के साथ जाता मानों सोनू को अपने दोस्तों के बिना न सुबह होगी न शाम. ।एक दिन सोनू के ऑफिस से फ़ोन आया बॉस ने जल्दी बुलाया है।
ऑफिस गया तो पता चला उसकी कम्पनी किसी कारण वश नुकसान मे चल रही है, बंद होने वाली है, सोनू को एक माह का समय दिया गया, दूसरी कम्पनी के लिए, उसे ही नहीं सारे स्टाफ को कहा गया ।सोनू ने कई कंपनियों में अप्लाई किया था किन्तु कहीं से कॉल लेटर नहीं आया l सोनू के दोस्तों को जब ये बात पता चली तो उसे सांत्वना देने के बजाय नसीहत देने लगे, धीरे-धीरे सबने मिलना बंद कर दिया,इस बीच वो बीमार हो गया, तबीयत इतनी खराब हो गई की वो उठ नहीं पा रहा था, हफ्ता भर ऐसे ही प़डा रहा कोई दोस्त झांकने तक नहीं आया .. नौकरी भी नहीं रही घर में कुछ खाने को नहीं। कुछ सूखी रोटियां जो फ्रिज में न जाने कितने दिन से पडी थीं, जिसे फेंकने जा रहा था भूल से छूट गई थीं, उन्हीं रोटियों से काम चला रहा था। कभी खाना बर्बाद करने वाला आज इस हालत में, सोचा भी नहीं होगा, करीब - करीब बेहोशी की हालत हो गई उसकी, ऐसा लगा बचेगा नहीं, जिस फ्लैट में रहता था बगल में शर्मा आंटी थी कभी - कभी सोनू उनके बेटे को स्कूल से ला देता था । उन्हें सोनू की कोई आहट नहीं मिली तो देखने आ गईं, देखा ये लड़का तो बुखार से तप रहा है। वो हमेशा नहीं आती थी क्योंकि उसके घर दोस्तों की महफ़िल रहतीं किन्तु आज वो अचानक सोनू को इस हालत में देख दहल गई डॉक्टर को बुलाया जब सोनू को होश आया तो उसकी आंखें भर आईं अपने दोस्तों को सोचकर सब के सब मतलबी, उनके लिए पानी की तरह पैसे बहाया करता आज इस मुश्किल ने उसे बहुत कुछ सीखा दिया.।

इंदु उपाध्याय, पटना


 



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