रामलाल अपने मित्रों की बैठक में अपनी पत्नी के गुणगान करते थकते नहीं थे। आख़िर एक दिन मैंने पूछ ही लिया रामलालजी भाभी ने ऐसा कौन-सा काम किया है जो आपने उन्हें नेत्रो पर; वाणी पर सजाये रखा है।
रामलाल जी ने तपाक से कहा अजी क्या बताऊ उसके दिमाग़ में नई नई योजना चलती रहती है। वह गंभीरता से तो कभी हंसते हुए समस्या हल कर देती है।
छः माह पहले बिटिया की शादी के समय दुःखी मन से मायके गई बहू को प्रेम से मना कर लें आई थी। यहां तक की बेटे के गम को भूल बहू से कहा वो पीली चुनरिया बिटिया को ओढ़ाना है जो तुम्हारी शादी में पहनाई थी। सभी रूढ़ियों को तोड़ उसने बहू को आगे रख शादी की सभी रस्म अदायगी की थी। सभी सम्बन्धी ताकते रह गये थे। बहू ने ही थाट से बिदाई की रस्म भी पूरी की थी ।बहू बेटी बन गईं थीं ।समझे भाई अपनी परम्पराओं को भी बेडर होकर संशय अपशकुन जैसा कहने वालें लोगों को सख्त ज़वाब देने में पीछे नहीं हटती ।मैं अब सोचने के लिए बाध्य हो गया था।
अमिता मराठे
इन्दौर
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