तुझसे कभी कोई काम ठीक से हुआ भी है जो आज होगा, जब भी कोई काम मन से करने को कहो बिगाड़ पहले देती है, ऐसे बनता है भरवाँ पराँठा... (निशांत ने गुस्से में थाली को सरकाते हुए कहा) पत्नी की आँखें क्रोध और वेदना से भर आईं |
बड़ी अच्छी सुगंध आ रही है... भाभी जी, क्या बनाया है नाश्ते में? (निशांत के मित्र ने घर में प्रवेश करते हुए कहा) तभी मैं कहूं, भईया आपकी तारीफ करते क्यों नहीं थकते ! कहते हैं मैंने तो काबलियत देखकर विवाह किया है, रंग रूप नहीं |
पत्नी अब दुविधा के भँवर में गोते लगा रही थी यह समझने के लिये कि वास्तव में सत्य क्या है ? जो उसने देखा या फिर जो उसने सुना | आवेश में व्यक्ति कुछ भी कह जाता है, यह सोचकर उसने स्वयं को समझाया और पुनः पराँठे बनाने में व्यस्त हो गई |
किरण बाला
( चण्डीगढ़ )
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