पिता की मृत्यु के बाद अनुराग ने उनके तीसरे पुण्यतिथि पर कुछ अलग करने का सोचा। पत्नी से कहते हुए क्यों ना इस बार हम पिताजी की पुण्यतिथि पर कुछ भला काम करें पत्नी ने कहां क्यों हर बार हम खाना अच्छे से अच्छा खिलाते तो है दान दक्षिणा भी अच्छा देते हैं और अलग क्या करें मैं तो सोच रही हूं इस बार मैं अपनी बहन को ही बुला लूंगी बहुत दिन हो गए उसे नहीं देखा।
अनुराग ने कहा बहन तो मेरी भी यही है मैंने भी उसे बहुत दिन से नहीं देखा पत्नी ने बड़े अलग भाव से पति को देखा। और चाय बनाने के लिए रसोई घर में जाती हुई बोली जैसा आपको ठीक लगे तभी अनुराग बोले अरे न तुम्हारी बहन ना मेरी बहन मैं तो सोच रहा हूं पिताजी जब थे तो वह वृद्ध आश्रम में अपनी पेंशन से बहुत दान करते थे तो क्यों ना हम भी वही कुछ ऐसा करें जो वृद्ध आश्रम के लिए उचित हो। तभी पत्नी ने सहमति जताते हुए कहा इस समय गर्मी बहुत ज्यादा है और हम पिताजी के जीवित रहते हुए उनके कमरे में ऐसी नहीं लगा पाए थे तो क्यों ना हम वृद्ध आश्रम में ऐसी ही लगवाए अब हमारी आर्थिक स्थिति भी ठीक है और अनुराग ने पत्नी की बात मानते हुए पुण्यतिथि आने पर वृद्ध आश्रम में एसी लगवाया उस दिन दोनों ही सारे दिन पिताजी की बातों को याद करते हुए भावुक हो गए थे। सच है इंसान के जाने के बाद उसकी कद्र ज्यादा हो जाती है।
नीता चतुर्वेदी
विदिशा (म.प्र.)
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