रामू एक मज़दूर है और शहर बंद चल रहा है. आज चार दिन हो गए रामू को कोई काम नहीं मिला है. घर मे खाने का जो भी सामान बचा था वह ख़त्म होने वाला है. रामू की पत्नी बसंती ने खाना बनाकर अपने दोनों बच्चों किशोर और कविता और उनके पिता रामू को परोस दिया.रामू ने बसंती से पूछा "तुम काहे नहीं खा रही हो "? "
"हम बाद में खइबे " खाना खाकर रामू टहलने निकल गया और दोनों बच्चे लेट गए. बसंती ने देखा रामू की थाली मे एक रोटी बची है और उसने वही रोटी खा ली.रामू लौट कर आया. रामू ने बसंती से कहा "हम जानते हैं घर मे खाने को कुछ नहीं बचा है इसलिए तुमने हमें परोस दिया और खुद बाद मे खाने की बात कह रही थी. इसलिए हमने एक रोटी बचा दी थी. आखिर तुम हमरी पत्नी हो तुमको हम भूखा कैसे सोने देते.भगवान हर जन्म तुमको ही मेरी पत्नी बनाकर भेजें ".रामू की बात सुनकर बसंती की आँखों मे पानी आ गया और उसे रामू पर नाज़ हुआ.
स्वरचित मौलिक रचना.
द्वारा - सुरेंद्र सैनी बवानीवाल "उड़ता " 713/16, छावनी झज्जर (हरियाणा ) संपर्क +91-9466865227 udtasonu2003@gmail.com
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