टूट बिखरने का गम, खिलने नहीं देता
इस फूल को इस सत से मिलने नहीं देता
तेज हवा बारिश तूफान का मुझे है डर
गिरकर धरा पर मुझको कुचल जाने का है डर
इजहारे मोहब्बत में जरिया होने का है डर
प्रेमी के हाथों यूं ही तोड़े जाने का है डर
पर बात शहीदों की हो तो एक पल ना गवाऊं
मंदिर से पहले राह शहीदों की बिछ जाऊं
जाऊं कुचल मैं शव पे उनके करके कुछ जतन
कहूंगा फिर गर्व से भारत मेरा वतन
गर् हो सका ना अपने वतन पे मैं कुर्बान
बेकार जाएगी मेरी खुशबू यह रंग और जान
पूजा का फूल होगा अब शहीदों पर कुर्बान
नीता चतुर्वेदी
विदिशा(म.प्र.)
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