ऐसा भी नहीं की मैं हूँ अमूल^.(बिना जड़ का )
है दिल के सागर का एक कूल^.(किनारा )
तेरे दीदार का इंतज़ार रहता है.
जबभी दिखे तू बजता है बिगुल^.(तुरही)
तेरे आने की बेचैनियाँ होती हैं.
रहरह चूमता हूँ क़दमों की धूल.
चेहरा नूरानी है,आँखें झुकी सी,
सुराही-गर्दन,होंठ पूजा के फूल.
कोई गैर देखे तो बुरा लगता है,
रह-रह सीने में चुभती है शूल.
दुनियावी दुश्वारियां^किसे पसंद,(कठिनता)
तुमही बनाओ कोई बीच का पूल^.(रास्ता)
हर बात याद,बस इतना गया भूल,
"उड़ता"छोटा आसमां भरा अंजुल^(दिल का वासी)
स्वरचित मौलिक रचना
द्वारा - सुरेंद्र सैनी बवानीवाल "उड़ता "
713/16, झज्जर (हरियाणा )
संपर्क +91-9466865227
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