साथ-इंदू

अचानक कॉल बेल बजी रत्ना उठी और दरवाज़े ओर लपकी जब दरवाज़ा खोला तो सामने रुचिर खड़ा था l वही चिर परिचित जादुई मुस्कान जो देखकर कोई भी उसका हो जाता था l " अरे तुम..इतनी जल्दी आ गए मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा है ?" वो मुस्कराकर बोली l रुचिर पहले की ही तरह कमरे के अंदर आकर बगैर इजाज़त के धप्प से सोफ़े पर बैठ तापक से " बोला". बीवी चलो चाय लाओ"वो मुस्काई  पहले की तरह किन्तु पहले की मुस्कराहट जैसी ताजगी और जिंदादिली अब  नहीं थी,


 " ये बताओ तुम मिलना क्यों चाहते थे, और अचानक तुमने मेरे घर में मिलने की ज़िद क्यों कि?"वो अचानक खड़ा हो गया तुम ही बोलोगी या चाय पिलाओगी ह? " रत्ना को मालूम था रुचिर को उसके हाथ की इलायची वाली चाय पीना उसे बहुत पसंद है l
वो चुप चाप रसोई में चली गई रत्ना जानती थी वो आया है तो शाम तक रहेगा जबतक उसका मन हल्का नहीं होगा बाते करता रहेगा l
रत्ना चाय बना रही थी, चाय के साथ क्या क्या उसके मन मे उबल रहा था वो भी नहीं जानती,  उसे आभास हुआ रुचिर पीछे आकर खड़ा हो गया ना जाने कब, "क्या कुछ चाहिए, उसने अपने भाव को छुपाने का प्रयास करते हुए कहा l
वो उसको बड़े गौर से देखे जा रहा  था फिर बोला "ईन बीस सालों में ज़रा भी नहीं बदली, बल्कि और आकर्षक लग रही हो। ये ब्लू साड़ी बहुत जंचती है तुम पर, ये तो वहीं साड़ी है जिसे तुम मुझसे पहली बार मिली थी तो पहनी थी, वहीं है न..?"वो हमेशा कहता तुम गजगामिनी हो ऐसी शायद ही कोई हो lवो मुस्कुराइ और धीरे से अपने आँसू छिपाती नज़रे नीचे किए किए बोली, "तुम भी कहाँ बदले,"  बदला हूँ न देखो तो समय पर आ गया हूँ, इस डर से की तुम फिर मुझसे नाराज ना हो जाओ, और फिर मैं बीस साल तुम्हारा इंतज़ार करूँ..।
 मैं फिर कहता हूं इस बंद कमरें की कसम मुझे थाम लो अब और अकेला नहीं चल सकता तुम्हारे बिना की कल्पना मात्र से. मुझे डर लगता है तुम मेरी गुड लक हो। रत्ना को कई शिकायतें करनी थी रुचिर से किन्तु अब सब भूल गई.।आज फिर उसकी बातों में आ गई..। 
इंदु उपाध्याय पटना



 


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