रमन और राकेश पार्क में टहलते- टहलते बतिया रहे थे। राकेश कह रहा था - यार रमन, तेरा तो ठीक है, तुझे तो बैंक की नौकरी में सरकार से काफी सुविधाएं मिली हुई हैं। वेतन भी अच्छा मिलता है। हम तो ठहरे छोटे से प्राइवेट स्कूल में पढ़ाने वाले टीचर। जिनका फटीचर कहकर मजाक भी उड़ाया जाता है। इस बारह हजार की नौकरी में क्या ओड़ूँ क्या बिछाऊँ ? बस दाल-भात खाकर गुजारा कर लेते हैं। वो तो अच्छा है कि मकान का भाड़ा नहीं देना पड़ता है। सर ढकने को पिता जी की झोपड़ी मिल गई। तभी राकेश के स्कूल का एक और टीचर यशवंत मिल गया। राकेश ने यशवंत के हालचाल पूछने के बाद कहा- अच्छा यशवंत तुम्हीं बताओ हमें इस स्कूल की नौकरी में क्या मिलता है। सारे दिन स्कूल में शरारती बच्चों के साथ दिमाग खपाओ। घर आकर कॉपी चैक करो। सुबह से फिर वही दिनचर्या शुरू। हमें मिलता क्या है ? इस कमाई से हम आधा-अधूरा सा जीवन जीते हैं। अब रमन बोल पड़ा - हां यार, तुम लोग बैंक की परीक्षा क्यों नहीं देते हो ? यह गैर सरकारी छोटे-छोटे स्कूलों के टीचर की कमाई भी कोई कमाई है। मेरी तरह बैंक की नौकरी करोगे, तो चाल-ढाल ही बदल जायेगी। ऐश करोगे। रमन की बात को बीच में ही रोक कर यशवंत बोल पड़ा। अरे यार, शिक्षक कभी साधारण नहीं होता, प्रलय और निर्माण उसकी गोद में खेलते हैं। शिक्षक वह है, जो प्रेम के साथ अपने विद्यार्थियों का मित्र बनकर उनकी जीवन रूपी बगिया को अपनी देख-रेख में सर्वांगीण विकास की ओर बढ़ाने का प्रयत्न करता है। शिक्षक इंसान बनाता है, और हाँ ! रहा कमाई का सवाल, तो तुम बैंक का काम करने वाले नहीं समझ पाओगे कि शिक्षक क्या कमाता है।
रमन, तुम शिक्षक की कमाई जानना चाहते हो, तो सुनो!शिक्षक वो कमाता है। जो कोई और कभी कमा ही नहीं सकता है। शिक्षक ताउम्र सम्मान कमाता है। संतोष कमाता है। खुशी कमाता है। जब हमारे विद्यार्थी सार्वजनिक रूप से हम को नतमस्तक होकर प्रणाम करते हैं। चरण-स्पर्श करते हैं। जब बड़े-बड़े पद पर बैठे हुए हमारे विद्यार्थी अहंकार त्याग कर अपने कर्मचारियों के सामने अपने शिक्षक के समक्ष झुक कर आदर व्यक्त करते हैं। तब शिक्षक का हृदय गर्व से भर जाता है। यही एक शिक्षक की सच्ची और वास्तविक कमाई है। यशवंत की बात सुनकर रमन और राकेश की आँखें खुली की खुली रह जाती हैं।
#लेखिका
निशा नंदिनी भारतीय
तिनसुकिया, असम
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