सूनी सड़क पर
ठेला उठा कर
चल दिया बचपन
यूँ मुस्कराकर।।
सूनी सड़क को
मकां कि चमक को
भान ही कहां है
तरसा कोई है
रोटी नमक को
भूख कि धधक को
देखा नहीं उसने
माँ की कसक को
जलते चूल्हे पर
अब रोटी पकेगी
देखना जाकर
झोंपड़ी में तुम
नमक में मिली हुई
रोटी की महक को
रेखा दुबे विदिशा
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