मेरे मन का मौसम बदल सा जाता है जब मैं अपनी नानी के गांव की यादों को किसी से बांटती हूं। सुंदर प्राकृतिक वातावरण, चटक ती पूरी कलियां गेहूं की लहलहाती बालियों की तरह में भी उल्लास में डूब जाती हूं मेरे बचपन की बहुत सी यादें जुड़ी हैं नानी का गांव बड़ा ही सुंदर है दिल खुशी से भर जाता था जब मैं अपनी नानी के यहां जाती थी।
आज जब मेरी नानी के यहां मेरे हाथ से लगाए हुए पेड़ों को देखती हूं तो मानो मैं उनके साथ अपना बचपन जी लेती हूं नानी तो इस दुनिया में अब नहीं है। मगर उनके साथ बिताए हुए दिन मेरे दिलो-दिमाग पर अपनी गहरी छाप छोड़ कर गए हैं। बचपन की मुझे एक घटना याद है मां ने कहा की नानी की बहुत तबीयत खराब है मैं उन्हें देखने जा रही हूं। तभी मां के साथ जाने की जिद मैं भी करने लगी। पता है हम रात को ही बस से छिंदवाड़ा के पास चौरई गांव की ओर चल दिए। सुबह होते ही हम वहां पहुंच गए। पहुंचते ही एक बैलगाड़ी हम लोगों को लेने आई। मैंने बड़ी अचंभित नजरों से उस बैलगाड़ी को देखा और मां से पूछा क्या हम इसमें जाएंगे नानी के पास मां मुस्कुराती बोली वहां तक बस नहीं जाती इससे पहले हम लोग घोड़े की सवारी करके जाते थे
आसपास का प्राकृतिक वातावरण बड़ा ही सुंदर था थोड़ी देर में हम नानी के घर पहुंचे पहुंचते ही नानी ने मुझे गले से लगा लिया मैंने उन्हें छूकर देखा उनको बुखार तो नहीं था मगर वह मुझे देख काफी खुश थी। मैंने उनका हालचाल पूछा तो वह बोली मैं तो शुद्ध घी के जमाने की हूं मेरी बूढ़ी हड्डियों में अभी बहुत जान है खाना पीना खाने के बाद मैंने उनसे कहा नानी मुझे गांव देखना है वह बोली नेकी और पूछ पूछ। चल मेरे साथ में अभी धान बोने के लिए जा रही हूं। और मैं उनके साथ चल दी। उन्होंने पानी में भरे हुए गड्ढे में चावल की पौध लगाई मैंने भी उनके साथ हाथ बटाया घर आकर नानी ने मुझसे अपने आंगन में आम जामफल नीम जामुन के पेड़ लगवाए वह पेड़ आज भी हैं नानी ने उन पेड़ों की देखरेख की और मुझसे भी लगाने को कहा। इस तरह पूरा दिन हमारा बीता रात को नानी ने कई कहानियां भी सुनाई उस गांव में नानी ने बताया कोई फिल्म की शूटिंग भी हुई थी वहां का प्राकृतिक सौंदर्य आज भी देखते ही बनता है इस तरह पूरा एक दिन बिता कर दूसरे दिन हम अपने शहर लौट आए आकर मैंने भी नानी के कहे अनुसार नए मकान में कई पेड़ लगाए हैं जिसमें से आम के पेड़ में इस साल जबर्दस्त फल आए हैं उस पेड़ को देख मैं हमेशा नानी को याद करती हूं और नानी का प्रकृति प्रेम मुझ में भी जीवित है।
नीता चतुर्वेदी, विदिशा
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