झुरमुट साँझ से किनारा कर रहे थे।अँधेरा शैने-शैने उनको अपने आगोश में लेता जा रहा था.चन्द्रमा की किरणें आसमान के झींने आवरण से निकल कर अपनी कलाबाजी में मस्ती करने लगीं थीं। प्रिया भी अपने रोजमर्रा के काम निबटा कर बाहर की आहट लेने का बार-बार प्रयास कर रही थी उसने घड़ी की तरफ निगाह डाली तो आठ बजकर 35 मिनिट होने को था पर निलय का अभी तक कोई अता-पता नहीं था।
बच्चे.. खाना खा-पी कर सोने की असफल चेष्टा कर रहे हैं जागकर कहीं उससे कुछ सवाल जवाब न कर बैठें अतः वह बेडरूम में जाना नहीं चाहती थी। इसलिए बड़े बे मन से वह ड्राइंगरूम में रखी पत्रिका के पन्ने पलटने लगी पर आज उसका मन उड़ते हुए पंछी की तरह अपने गंतव्य के बीच आने वाले परिदृश्यों को लांघते हुए वापिस उस शाखा पर जा बैठा जहां से उसने अपने जीवन की उड़ान को नया मुकाम देने का निश्चय किया था पर अब अपने खुद के ही निर्णय से वह व्यथित हो गया हो।
और हारकर लौटना उसे असंभव प्रतीत होता हो! हाँ सही है!. आज उसकी शादी को सात वर्ष हो चुके है.लव और कुश जैसे दो खूबसूरत बेटे पाकर वह बहुत खुश भी है। यह सोचते हुए वह धीरे से मुस्करा दी आखिर निलय और वह भी तो प्यार के अटूट बंधन में बंधे है खूबसूरती में भी कोई किसी से कम नहीं हैं। एक सम्पूर्ण खुशहाल परिवार सोचते ही उसकी मुस्कराहट अचानक कड़की हुई बिजली की तरह लुप्त होती गई और उसके माथे की सलवटों में चिंता का रंग गहराने लगा।
तीर की तरह एक प्रश्न दिल को वेधता चला गया!...कहीँ निलय?... मेरे साथ विश्वासघात तो नहीं कर रहे मुझसे कुछ झूठ तो नहीं बोल रहे? दिल ने कहा नहीं.. नहीं...यह सब उसका वहम है!...
दिमाग ने प्रश्न किया ?..लेकिन पता नहीं क्यों अभी कुछ दिन से निलय का व्यवहार अजीब सा होता जा रहा है?.. उनके सम्बन्धों के दरमियान एक मौन आ गया है। आ गई है!..एक रिक्तता, आ गई है!..एक ख़ामोशी, कब दोनों ने अपनी भावनाओं को अपने मैं समेट कर रहने की आदत डाल ली है उन्हें खुद ही पता नहीं चला एक ही छत के नीचे दोनों अजनबियों की तरह कब रहने लगे। निलय से उसे कभी कोई शिकायत भी तो नहीं रही थी।निलय को कभी बाजार और सैर सपाटे का शौक नहीं था सो उसने उसकी इस आदत को सहर्ष स्वीकार कर लिया था। थोड़े क्रोधी थे पर वह क्रोध करने के मौके भी कम ही देती,इतना सब करने के बाद भी निलय में आये असामान्य परिवर्तन को वह महसूस कर रही थी जिद्दी और क्रोधी होना एक अलग बात है लेकिन अनैतिक और घृष्टता पूर्ण व्यवहार करना अलग बात है।
आजकल निलय उससे कटा-कटा सा रहता है .कुछ पूछते ही आग बबूला हो जाता है । अभी उसी दिन की बात तो है निलय तैयार हो कर कहीं जा रहे थे!..जा क्या रहे थे बल्कि उस समय रोज ही निकलने का बहाना ढूंढकर निकल जाते थे।
उस दिन जब प्रिया से चुप नहीं रहा गया और वह अपनी उत्सुकता को जब्त नहीं कर पाई तो चाय का कप निलय को पकड़ते हुए बोली आप कहाँ जा रहे हैं रोज कोई काम रहता है क्या इस वक्त ?...इतना पूछते ही चाय का कप नाचता हुआ गेट के पास जा गिरा और निलय का झन्नाटेदार थप्पड़ उसके गाल पर प्रिया कुछ सोच-समझ पाती उसके पहले ही एक सवाल तीर की तरह उसके कलेजे को छलनी करता हुआ निकल गया अब हर काम तुझसे पूछ कर करूँगा क्या?..बहुत हो गया अब तुम्हारे साथ रहना मेरे लिए मुश्किल हो गया है। और क्रोध के आवेश में उसने प्रिया के पिता को फोन लगाया दिया था।
निलय बोल रहे थे और प्रिया को अपने कानों से लहू की बूंदें कनपटी पर सरकती हुई महसूस हो रहीं थीं। बस.अंतिम वाक्य उसे इतना ही सुनाई पड़ा .बाबूजी बहुत हुआ.तुम्हारी बेटी ने जीना हराम कर दिया है। आप समझा लो नहीं तो इसे तलाक दे दूँगा!..फिर मुझसे कुछ ना कहना इतना कह निलय ने जोर से फोन काट दिया और पैर पटकते हुए बाहर चले गए थे।
वह निश्तेज निष्प्राण खड़ी रह गई ।अपने अकेले होने का तब बोध हुआ जब उसकी आँखों से घुटकर आँसू उसके ह्रदय की तरलता को गालों से सरका कर लवों से लिपटा गये थे ।तब अपने आँचल में अपने निरीह आसुओं को समेट कर वह फूट-फूट कर रो पड़ी थी। वह बारबार सोच रही थी आखिर उसने गलत क्या पूछ लिया था ?एक निश्चित वक्त पर बिना बताये बिना कहें कहाँ चले जाते हैं निलय आखिर क्यों?..यह भी नहीं पता रहता कब आएंगे?.स्त्री सुलभ मन बार-बार उसे चेताता रहता है देखो !..,निलय तुमसे जरूर कुछ छुपा रहे हैं ।पर वह कुछ समझ क्यों नहीं पाती?..
सोचते सोचते दस बज गए उठकर उसने खिड़की से झांककर देखा चाँदनी रात के तारे दिल में कशिश पैदा कर रहे हैं रात-रानी की मदमस्त कर देने वाली खुशबू हवा के झोंके से आकर उसके तन-बदन से लिपट कर उसकी विरह पीड़ा को बढाती हुई उसे मदहोश कर रही थी,तभी कालवेल की आवाज से वह झनझना उठी।हड़बड़ा कर दरवाजे की तरफ भागी एक मुस्कान के साथ मन ने सोच हाँ अब निलय आ गये आंखें चुराते हुए प्रिया ने दरवाजा खोला और अंदर की और चल दी किंतु उसकी इंद्रियां पूरी तरह जाग्रत थीं वह निलय की हर भाव-भंगिमा को ध्यान से देख रही थी।आश्चर्य आज निलय को अपनी शादी की सालगिरह भी याद नहीं है! आज वह जानना चहाती है की आखिर उसके व्यवहार में यह अंतर क्यों आया है?.तभी निलय बोल पड़ा तुम अभी तक सोई नहीं?...उसके सवाल का बिना उत्तर दिए ही वह बोली !..आप खाना खा लीजिये
निलय ने एक गहरी द्रष्टि से उसे देखाऔर बोले !.दो रोटी ला दो।
थाली लगाते वक्त वह अपने आप को कितना असहाय महसूस कर रही थीपर क्या करे अभी पूछती है तो घर में कुहराम मच जायेगा सब उसी को दोष देंगे.सास कहेंगी...पूरे दिन में लड़का नौकरी कर के घर लौटा है तो दो रोटी चैन की नहीं दे सकती देखो ना!... सवाल जवाब की झड़ी लगा दी कोई घूमने फिरने थोड़े ही गया था।देवर-देवरानी मुँह ढांककर हंसेंगे पूरा मुहल्ला सुनेगा, उफ्फ ये जीवन सोचते हुए उसने थाली निलय के सामने सरका दी ।निलय!. वे मन से खाना खा कर लेट गए जब तक वह किचिन ठीक करने बहार आई निलय नींद के आगोश में जा चुके थे। उसने ध्यान से देखा एकदम भोला और मासूम चेहरा उसे अपने पर गिलानी हो आई बेचारे पूरे दिन काम करते हैं वह नाहक ही शक करती रहती है। धीरे से वह निलय के पहलू में लेट गई।सुबह जब नींद खुली निलय चाय बना रहा था बोला मुँह हाथ धोलो चाय बन गई...उसे अपने भाग्य और रश्क हो आया मुस्करा कर वाशरूम की तरफ चल दी वापस आई तो चाय तैयार थी, वह चाय की चुस्कियों मैं खो गई और निलय अपने ऑफिस में दरवाजा अटका कर कुछ काम करने लगे चाय पीते-पीते प्रिया की नजर दरवाजे पर गई .एक शैतानी मिश्रित हंसी उसके चहरे पर तैर गई वह दबे पैर चलती हुई दरवाजे पर पहुँच कर सोचने लगी आज सारे गीले शिकवे भुला कर वह निलय से अपने सच्चे प्यार का इजहार करेगी।
पर यह !..क्या दरवाजा खोलते ही निलय बुरी तरह हड़बड़ा गया और जल्दी से अपने हाथ का कागज छुपाने की असफल चेष्टा करने लगे जो एक ही झटके से प्रिया के हाथ में था ।निलय!.प्रिया पर.तेजी से झपटा बोला खबरदार अगर वह कागज खोला वह मुझे दे दो । पर नेहा.. आनन-फानन में भागती हुई दूसरे कमरे में जा चुकी थी।
दरवाजा बंद कर के उसने धड़कते ह्रदय से उसने कागज की इबारत को पढ़ना शुरू किया...प्रिय हम कब शादी करेंगे? अब तो आप अपनी पत्नी को सच बता दो...जो रिश्ता आपके लिए बोझ है उसे जबरन क्यों ढो रहे है आप...उफ़ इतना अपमान उसके स्त्रीत्व का!. काश आज एक बार फिर जमीन फट जाये और समा जाये वह भी माँ सीता की तरह... यह गरल पान कैसे करे वह... बाक़ी के अक्षर उसके आंसुओं में गडबड हो गए,जिस व्यक्ति से सात जन्म का साथ माँगा था वह तो सात साल भी रिश्ता ईमानदारी से नहीं निभा पाया वह और उसके बच्चे अब कहाँ जायेंगे सोचते सोचते उसकी गहरी हुई आँखों में एक आत्म विश्वास आता चला गया तब वह एक सिंहनी कि तरह बाहर निकल कर दहाड़ी कौन है ये लड़की?..अगर बात यहाँ तक पहुँच गई है तो तुम मुझ को धोखा क्यों देते रहे ?...
कभी सोचा तुम्हारे बच्चों का क्या होगा ?...
क्या इज्जत रह जायेगी हमारी समाज में?...
अब मुझे एक पल भी यहां रुकना गवार नहीं है!. इतना कह कर पलटी और सबके रोकने के वाद भी अपना सामान बाँध कर सुबह होते ही बच्चों सहित मायके चली गई ।
सुस्त उदास बेटी माता -पिता के लिए त्रास का कारण होती है माता-पिता दोनों ही बेटी के दुःख का कारण जानने को उसके आगे पीछे लगे रहते लेकिन नेहा ने तो जैसे मौन धारण कर लिया था।
वह अपने बूढ़े माँ-बाप को दुःख देना नहीं चहाती थी.दोनों बेटों को पिता से कैसे दूर करे?.
किस किस को अपनी सफाई पेश करेगी !
लोग उसे परिवार तोड़ने वाली बद-मिजाज बहू कहेंगे !..उस भार को वह अपने सिर पर कैसे उठायेगी और सबसे बड़ी बात कैसे भूल सकती है वह की निलय उसका पति है।
जिससे वह आज भी अथाह प्यार करती है।
पर निलय को कुछ समझ क्यों नहीं आता ?...
बस उसे इन्तजार है तो इस बात का कि निलय को अपनी गलती का एहसास हो और वो उसे मनाने आयें सिर्फ इसी कारण वह चुप्पी साध गई है कुछ दिन बाद निलय उसे माफी मांग कर लेने भी आ गए और वो माफ करके संग चलने को भी तैयार हो गई वह नहीं बता सकती कि उसके प्यार में फर्क आया या नहीं!...
निलय बदला की नहीं!...
बस फर्क सिर्फ इतना था,...आज वह अपने साथ ले जा रही थी..एक पीड़ा,दर्द,एक शंका का वृक्ष,जो पल पल पल्लवित होता रहेगा उसके ह्रदय में और अपने विषैले नागफनी जैसे दांतों से लहुलुहान करता रहेगा उसकी कोमल भावनाओं को!..फिर भी वह हंस हंस कर जीती रहेगी और करती रहेगी अपने लहू का दान अपने परिवार की धमनियों में रक्त संचार के लिए,क्यों कि आज वह एक ऐसा सौदा करने जा रही है....जहाँ वह सीता की तरह धरती की गोद में नहीं समाएगी
वरन एक अभिशप्त प्यार की साक्षी बन कर जियेगी विरह की ज्वाला में जलते हुए सच्चे प्रेम की विरहिणी बनकर विश्वासघात की निर्लज्ज नींव के ऊपर विश्वास का घरोंदा बनाने के लिए एक अटल विश्वास के साथ चल दी आज फिर प्रिया।
रेखा दुबे
विदिशा मध्यप्रदेश
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