वो भयानक रात-ज्‍योति शर्मा

म एक छोटे से गाँव में रहते थे,एक  बार जब मैं करीब दस बारह साल की थी। हमारे स्कूल में पन्द्रह अगस्त के उपलक्ष्य में कार्यक्रम था,जिसमें मैंने भी भाग लिया था,ज्यादा कुछ नहीं करना था बस भारत माता बनकर खड़े होना था।
बहुत उत्सुकता थी मन में, शाम को जल्दी से खाना खाकर सो गई थी,दादी से कह कर सोई थी कि सुबह जल्दी उठा देना, घर में घड़ी के नाम पर बस एक दादा जी की हाथ वाली घड़ी थी,जिसे वे पहनकर शहर चले गए थे,पर दादी तारे देखकर समय का अंदाजा लगा लेती थी। रात को खुशी के मारे नींद नहीं आ रही थी, बार बार उठकर खिड़की से बाहर देखती की कहीं सुबह तो नहीं हो गयी।अचानक मैंने देखा कि खिड़की से तेज़ रोशनी आने लगी थी,मैंने सोचा सुबह हो गई और उठकर बाहर आ गयी,देखा तो सब सो रहे थे,पर लगा कि आज दादी की आँख नहीं खुली शायद और ये तो स्कूल में मुझे देर करवा देंगी,अच्छा होगा कि मैं खुद ही तैयार हो जाऊं।और घर से कुछ दूरी पर बने स्नानघर की और चल पड़ी। वहां से अकेले ही नहा धोकर वापस आने लगी तब कुछ दूरी पर मैंने देखा कि हमारी गाय के पास कुछ लोग घूम रहे थे।
मुझे लगा शायद दादी और माँ उठ गयी होंगी मैं उनकी और बढ़ने लगी,तभी मेरी आहट सुनकर वहाँ खड़े लोग भागने लगे,मैं डर गई भाग कर घर के भीतर घुसी देखा तो वहाँ सब सो रहे थे, मैंने दादी को उठाया तो दादी आकाश की और देखकर बोली अभी तो  दो ढाई ही बजा है लाड़ो सो जा!मेरी हालत ऐसी हो गयी कि काटो तो खून नहीं पसीना पसीना हो गई डर के मारे बुखार हो गया था,सुबह पता चला कल पूनम की रात थी, और गाँव में  चोर आये थे, ये सुनकर भारत माता निढाल सी बिस्तर पर तप रही थी...


ज्‍येति शर्मा जयपुर



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