आँखे न जाने ढूंढती किसे है,
इन सूनी आँखों में
इंतजार है किसी का।
तुम बिन सब फीके लगे,
दुनिया की ये रंगीनियाँ,
कैसे बीते ये पल जीवन के,
एहसास किसी से न बतलाया।
तुम ही तो थे,
जो समझ लेते थे मन की बात।
रात का कारवां गुज़र जाने पर,
एक नयी सुबह जब आती है,
एक याद फिर ताज़ा हो जाती है।
मन के सूने आँगन में,
जलता है एक दीया
सिर्फ तुम्हारे नाम का।
दीये की इस रोशनी में,
निहार लेती हूँ तुमको।
यादों के सहारे गुज़र
गयीं उमर सारी,
खामोश है दिल,आँखे है नम,
मुझसे ही मेरी पहचान
कराए मेरा ये गम ।
न भाये सावन की मस्ती,
न भाये मन को होली,
साथ जो तुम मेरे होते,
करते खूब हंसी ठिठोली।
एक वादा,
एक कसम,
जो हमने साथ उठाई थी,
छोड़ गये तुम अधूरा,
अकेले सूनेपन की परछाई में।
की बेवफाई तुमने मुझसे,
वादा किया था उमर
भर साथ निभाने का।
रूठ गये तुम मुझसे इस तरह,
कभी न तुमको मना पाऊँगी।
आँखों ने रोना छोड़ दिया है,
तेरी यादो के सहारे
जीना सीख लिया है।
स्वाती चौहान देहरादून
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