इश्क़, मोहब्बत में मुझे लगती फ़िर से ज़माना है
जानू से मिलने कि मुझे कॉलेज का बहाना है
अब तेरी मुलाक़ात की मेरी अच्छी किस्मत है
तेरे नाम की गाना में अब कैसा तराना है।
तुझे पाने या खोने का मुझे तो जिक्र होता है
कभी ना कभी रोने का मुझे तो जिक्र होता है
अंधेरी रातों में मैं पल- पल याद करता हूँ
तेरी सोच में सोने का मुझे तो जिक्र होता है।
तेरा फोन उठाने से मैं रातों में डरता हूँ
पापा जी है निकट में धीरे से बातों करता हूँ
मोहब्बत करने में सब,सब से चौरी करते हैं
जब तू भूल जाती है, मैं अंधेरों में मरता हूँ।
निकला घर का काम से मुलाक़ात कर लिया मैंने
जिंदगी भर संग रहने की बात कर लिया मैंने
पराया है तू लेकिन सदा मेरी धड़कन बनी है
बात से बात लड़ी जब दिन में रात कर लिया मैंने।
अनुरंजन कुमार "अँचल"
अररिया,बिहार
788139688
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