रविवार विशेष
दूर-दूर तक पसरा सन्नाटा! आंखें बंद किए दुकाने !अपनों की राह तकती सर्पीली -काली ,मौन सड़क! मन अवसाद से भर गया। यह कैसा दृश्य है ?कल्पना से परे! पर वास्तविकता हृदय में शूल से चुभने लगी ।महामारी ऐसी होती है! सब कुछ बदल गया। अपने दूर और दूर हो गए।कभी स्वप्न में भी कल्पना नहीं की थी कि ऐसा भी कुछ घट सकता है।वह चलता रहा, कंधे का बैग बहुत भारी लगने लगा। सूरज सिर चढ़ आया था । पसीने से लथपथ देह! वह चलता रहा। पेट में भी कुछ अजीब सी हलचल मची हुई थी ।चलते -चलते ही उसने पानी की बोतल निकाली, तली में थोड़ा सा पानी था ,दो घूंट गटक कर कंठ गीला किया और आकाश की ओर देखने लगा- 'प्रभु कुछ तो कृपा करो और कितनी परीक्षा लोगे?,: उसे अभी चलना है ,बहुत चलना है ,दूर तक जाना है, अपने गांव ,अपने परिवार और अपनी मां के पास ।बाबूजी तो फोन पर कितनी बार कह चुके -'बबुआ बहुत हुई गवा अब आ जाओ।'
पर वह चार पैसे कमाने के लालच में बदबूदार, सीलन भरी 'खोली' में पड़ा रहा ।फिर सब कुछ ठप्प हो गया। समय चलता रहा पर जिंदगी रुक गई ।सब कुछ थम गया ।
अचानक उसे लगा सब कुछ घूम रहा है ।बाबूजी का स्वर कानों में तेजी से पड़़ रहा था- बबुआ आ जाओ !बहुत हुआ बबुआ आ जाओ !बबुआ आ जाओ !वह चलता रहा ,चलता रहा ,अग्निपथ पर चलता रहा। और फिर सब कुछ शांत !नीरव! आग उगलती काली सड़क पर वह अचेत पड़ा था ।आंखें अभी भी आकाश तक रही थी ।
यशोधरा भटनागर, Email address-yashodharabhatnagar@gmail.com
समूह-'संस्कृति साहित्य मंच 2016' पता-152 Alka puri जैन मंदिर के पीछे देवास (म.प्र.)
0 टिप्पणियाँ