चूल्हा-निशा

माँ के हाथ की सोंधी रोटी 
बनती थी इस चूल्हे पर  
चौके में बैठ सारा परिवार 
भोजन का लेता आनंद 
कभी आग जब धीमी होती 
धुआं उगलता चूल्हा 
तब माँ, 
छोटी फुकनी ले हाथ में 
फूंकती जोर जोर से चूल्हा 
रोटी एक तवे पर डलती 
एक आगी पर सिकती 
पिता के कहने पर
पापड़ भी भून देती 
थोड़ी आग बाहर निकाल                                   
दाल गर्म कर देती 
साथ में पीने का गर्म पानी भी 
कर देती 
हम बतियाते माँ के संग
और भोजन करते जाते
फूली फूली रोटी देख
हम खुश हो जाते 
नहीं गिनती रोटी की 
न जाने कितनी खाते
अपने दो हाथों से माँ 
सारा कुछ कर लेती 
माँ के हाथ की खुशबू 
चूल्हे संग मिल जाती 
जब कभी जलती अंगुली 
जल भरे लोटे में डाल देती 
ये चूल्हा माँ का सच्चा साथी 
कभी नहीं घबराता 
गर्म-गर्म खाना हमको 
दिन-रात खिलाता।


निशा नंदिनी भारतीय 
तिनसुकिया, असम



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