चोट खाने आई हूँ
मुझे कोई ज़खम देदो
आज फेर मेरे दिल को
ऐक नया दर्द दे दो
यू तो हम कही रुकते नहीं,
बस तूम ही हो जहाँ से दिल
गुजड़ता नहीं
कुछ बात तो नही ऐसी तुममें,
कि तुम लुभा लो ।
खता तो मेरी नजरों की थी,
न जाने क्या देखा तुम मे
और कह दिया मुझे पटा लो ।
ईश्क तुम्हारे बस का नहीं
और हम ईश्क के बिना नहीं
न जाने क्या दिखा तुम में,
और मर मिटे हम यही़़़़़़़
मै गुलाब सी कली रही,
तू खिला ऐक फूल था।
मैं टूट कर बिखर गई ,
और तू मशगुल था।
खुशबु कुमारी दिल्ली
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